16 जून 2013 वर्ष की वो भयानक रात आज भी लोगो के दिलों- दिमागों से नहीं निकल सकी है । जब अचानक मंदिर के घंटो और भक्तों की आवाज़ चीख - पुकार  में तब्दील हो गई और देखते ही देखते लाखों लोग  त्रासदी की भेंट चढ़ गए मानो धार्मिक स्थल शमशान में तब्दील हो गया हो ।

तेज बारिश, बादल फटने के कारन केदारनाथ घाटी के ऊपर बने चोराबाड़ी ग्लेशियर टूट जाने के कारण इतना बड़ा हादसा सामने आया। लोगो की प्यास बुझाने वाली मंदाकनी नदी का ऐसा रौद्र रूप कि जो उसके सामने आया उसका नामोनिशान मिटाती चली गई। सरकारी आंकड़े कुछ भी कहे लेकिन हकीकत में लाखों लोगो की जाने गई और अरबों रुपये की संपत्ति का नुक्सान हुआ। मात्र 3782 लोग ही सरकारी आंकड़ों में मृत घोषित हुए जबकि घटना के 1 साल बाद भी मलवों में दबी लाशें मिल रही है और ना जाने अभी कितनी केदारनाथ मंदिर के पास दबी पड़ी है। जिसका आजतक उत्तराखंड सरकार ने संज्ञान नहीं लिया। इस त्रासदी में रामबाड़ा, गौरी कुण्ड जगहों का भी पता नहीं चला की यह यहाँ कभी थे। गौरी कुण्ड में ही करीब 50 से ज्यादा होटल और धर्मशालाएं थी जिनका आज नामो निशान नहीं है। त्रासदी के बाद सूर्या होप ऑपरेशन के तहत सेना ने राहत और बचाव कार्यों से लाखों लोगो की जाने बचाई। हम सभी को इन जाबांजों पर गर्व है।

लेकिन आज एक साल बीत जाने के बाद भी घाटी का पुनः निर्माण कार्य शोचनीय है। आपदा प्रबंधन बिलकुल बेकार और फेल साबित हुआ। यहाँ तक कि सरकारी मदद और देश विदेशों से मिले फंड से भी पीड़ित लोगो को राहत नहीं मिल सकी है. जबकि मंदिर के कपाट खोलने में सरकार ने बड़ी जल्दी दिखाई , क्योंकि मंदिर से होने वाले करीब 8 हज़ार करोड़ रुपये की आमदनी सरकार को परेशान किये हुए थी। मंदिर में जाने वाले भक्तों को भी सोचना चाहिए कि हम यहाँ श्रद्धा भाव से आये ना कि पिकनिक के तौर पर।