देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 'हिंसा' का मार्ग चुनकर लोगों मे क्रांति की ज्वाला भडकाने  वाले 3 क्रांतिकारियो को आज के ही दिन सन् 1931 को फाँसी दी गई थी। देशभक्त भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु हँसते-हँसते देश के लिए कुर्बान हो गए। आज पूरे मुल्क को शहीद दिवस मनाना चाहिए। भगत सिंह अपने विचारों से आज भी अमर है। सन् 1925 मे जब साईमन कमिशन के वहिष्कार को लेकर बड़ा आंदोलन चल रहा था तब अंग्रेजी शासन ने लाठीचार्ज करा दिया जिससे आहत होकर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। इस घटना ने भगत सिंह को झकझोर कर रख दिया और राजगुरु, सुखदेव के साथ मिलकर योजनाबद्ध तरिके से सुप्रीटेंडेट आफ पुलिस सैंडर्स को ताबडतोड गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया। जहाँ से भागने में तीनों की मदद चन्द्रशेखर आजाद ने की। जिसके बाद क्रांतिकारी साथी वटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर "अंग्रेजो को जगाने के लिए" दिल्ली के सेंट्रल एसेंबली मे बम फेंके। जहा से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में भगत सिंह ने करीब २ साल गुजारे । इस दौरान वे कई क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े रहे । उनका अध्ययन भी जारी रहा ।उनके उस दौरान लिखे ख़त आज भी उनके विचारों का दर्पण हैं । इस दौरान उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों के उपर शोषण करने वाला एक भारतीय ही क्यों न हो वह उसका शत्रु है । उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था मैं नास्तिक क्यों हूँ। जेल मे भगत सिंह और बाकि साथियो ने 64  दिनो तक भूख हडताल की। 23  मार्च 1931  को शाम में करीब 7  बजकर 33  मिनट पर इनको तथा इनके दो साथियों सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी दे दी गई । फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे । कहा जाता है कि जब जेल के अधिकारियों ने उन्हें सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा - 'रुको एक क्रांतिकारी दूसरे से मिल रहा है' । फिर एक मिनट के बाद किताब छत की ओर उछालकर उन्होंने कहा - 'चलो।
फांसी पर जाते समय वे तीनों गा रहे थे -

                                      "दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फ़त
                                               मेरी मिट्टी से भी खुशबू ए वतन आएगी ।

सौ० -अवनिन्द्र कुमार सिंह
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