कभी उत्तराखंड राज्य आंदोलन के धुर विरोधी रहे हरीश रावत को प्रदेश अध्यक्ष बना कर उनके नेत्तृत्व मे कांग्रेस की जीत के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी एन डी तिवारी के पास चली गयी थी और अब जाकर १३ साल बाद कुर्सी मिली तो किसी काटो के ताज से कम नहीं | उत्तराखंड बनने के बाद यहाँ के लोगो को हिमाचल ,अरुणाचल जैसा बनने की उम्मीद जगी थी लेकिन इसकी नीव तो पहाड़ी -देसी ,स्थायी -मूल -जाति, भ्रष्टाचार,जमीन मे फंस कर रह गई| जब तक असली मुद्दो पर कोई भी मुख्यमंत्री ध्यान नहीं देगा कुर्सी की दौड़ मे उच-नीच चलती रहेगी |
जब तक बहुगुणा सरकार थी तो उनके बेटे साकेत बहुगुणा ने जमकर माल लूटा ,चाहे वो आपदा हो ,हर विभाग के तबादले हो या टिहिरी बांध विश्थापितो की जमीन को लेकर घोटाले हो |बीजेपी हो या कांग्रेस सभी ने मोः गजनवी की तरह प्रदेश को लूटा | लेकिन इस बार स्पस्ट जनादेश न देकर भी भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा मिला क्योकि सभी निर्दलयों ने मिल कर पी डी एफ अलायन्स बनाकर स्वार्थ, अवसरवादिता और खरीद -फरोख्त की राजनीति की है |
सतपाल महाराज भी मुख्यमंत्री की दौड़ मे शामिल हो गए है जब से बीजेपी का दामन थामा| क्या डील हुई वो तो आने वाला वक्त जल्दी बता देगा क्योकि पहले हरीश रावत ने कुर्सी पर नहीं बैठने दिया तो मजबूरन विजय बहुगुणा को लाया गया और इस बार खुद हरीश रावत ने कुर्सी हथया ली ,जिससे खफा होकर महा राज ने देश -प्रदेश मे कांग्रेस विरोधी लहर को भांपते हुये भगवा चोला अपना लिया | एक तरफ सतपाल महाराज ने आध्यात्मिक गुरु का चोला पहन रखा है, वही दूसरी और मुख्यमंत्री कुर्सी की महत्वकांशा ने उन्हे भगवा चोला पहनने पर मजबूर होना पड़ा क्या धरम और राजनीति का भी कभी गठजोड़ हुआ है | अब हरीश रावत को अपनी कुर्सी बचाने के लिए विधायको का भरपूर समर्थन ,हरिद्वार सीट सहित ज्यादा तर लोकसभा सीट (जो मुमकिन नहीं )और जुलाई से पहले विधानसभा का सदस्य बनना होगा, लेकिन दिल्ली मे बीजेपी की नई सरकार बनने के बाद रावत सरकार का काउंट डाउन शुरू हो सकता है क्योकि रुड़की रैली मे मोदी ने रावत सरकार को कुश समय और चलने वाली सरकार बताई थी ,जिसका इशारा महाराज को उत्तराखंड का नया महाराज बनाने का था क्योकि कुछ विधायको का सतपाल महाराज के खेमे मे आना और बहुगुणा का भी किसी रूप मे समर्थन मिलना अचरज नहीं होगा |देखना बाकि यह है की हरीश रावत विधायको को अपने पाले मे रख पायगे या नहीं या महाराज के लिए कुर्सी खाली करेंगे।
जब तक बहुगुणा सरकार थी तो उनके बेटे साकेत बहुगुणा ने जमकर माल लूटा ,चाहे वो आपदा हो ,हर विभाग के तबादले हो या टिहिरी बांध विश्थापितो की जमीन को लेकर घोटाले हो |बीजेपी हो या कांग्रेस सभी ने मोः गजनवी की तरह प्रदेश को लूटा | लेकिन इस बार स्पस्ट जनादेश न देकर भी भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा मिला क्योकि सभी निर्दलयों ने मिल कर पी डी एफ अलायन्स बनाकर स्वार्थ, अवसरवादिता और खरीद -फरोख्त की राजनीति की है |
सतपाल महाराज भी मुख्यमंत्री की दौड़ मे शामिल हो गए है जब से बीजेपी का दामन थामा| क्या डील हुई वो तो आने वाला वक्त जल्दी बता देगा क्योकि पहले हरीश रावत ने कुर्सी पर नहीं बैठने दिया तो मजबूरन विजय बहुगुणा को लाया गया और इस बार खुद हरीश रावत ने कुर्सी हथया ली ,जिससे खफा होकर महा राज ने देश -प्रदेश मे कांग्रेस विरोधी लहर को भांपते हुये भगवा चोला अपना लिया | एक तरफ सतपाल महाराज ने आध्यात्मिक गुरु का चोला पहन रखा है, वही दूसरी और मुख्यमंत्री कुर्सी की महत्वकांशा ने उन्हे भगवा चोला पहनने पर मजबूर होना पड़ा क्या धरम और राजनीति का भी कभी गठजोड़ हुआ है | अब हरीश रावत को अपनी कुर्सी बचाने के लिए विधायको का भरपूर समर्थन ,हरिद्वार सीट सहित ज्यादा तर लोकसभा सीट (जो मुमकिन नहीं )और जुलाई से पहले विधानसभा का सदस्य बनना होगा, लेकिन दिल्ली मे बीजेपी की नई सरकार बनने के बाद रावत सरकार का काउंट डाउन शुरू हो सकता है क्योकि रुड़की रैली मे मोदी ने रावत सरकार को कुश समय और चलने वाली सरकार बताई थी ,जिसका इशारा महाराज को उत्तराखंड का नया महाराज बनाने का था क्योकि कुछ विधायको का सतपाल महाराज के खेमे मे आना और बहुगुणा का भी किसी रूप मे समर्थन मिलना अचरज नहीं होगा |देखना बाकि यह है की हरीश रावत विधायको को अपने पाले मे रख पायगे या नहीं या महाराज के लिए कुर्सी खाली करेंगे।
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