आज पूरे देश में फर्जी डिग्री की चर्चाएँ हो रही हैं, कभी शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी  और कभी आप के कानून मंत्री जितेन्द्र तोमर।  ऐसे ही अनेक नेता और सरकारी कर्मचारी हो सकते हैं जिनकी डिग्रियां फर्जी होंगी . लेकिन इन सबको कोई भी सरकारी पद देने से पहले ही जांच पड़ताल क्यों नहीं की जाती ? 
आज देश में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जो किसी कि डिग्री का आसानी से पता करवा सके कि यह सही है या गलत, इसी प्रकार देश के कोलेजों और यूनिवर्सिटी  का भी यही हाल है।  देश के युवा के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है जिससे उन्हें आसानी से सही कोलेजों कि जानकारी मिल सके। 
देश के बड़े पदों पर बैठे मंत्रियों को चुनाव का टिकिट देने से पहले चुनाव अयोग उनकी दी हुई जानकारी क्यों नहीं चेक करता ? क्या चुनाव आयोग कि जिम्मेदारी नहीं है कि वह सही आदमी को टिकिट दिलवाए

बाद में नेताओं की पोल खुलने से देश कि जनता को ही नुकसान उठाना पड़ता है।  ऐसे मुद्दों से कीमती समय बर्बाद होता है।  देश विकास के मुद्दों को छोड़कर फ़ालतू के मुद्दों पर बहस बाजी की जाती है
 
आज के तकनिकी युग में भविष्य में ऐसा ना हो देश में एक ऐसा सिस्टम बनाना चाहिए जिससे कोई भी आसानी से डिग्री और कोलेज व् यूनिवर्सिटी कि जानकारी फोन, मेसेज, मोबाइल एप्लिकेशन से पता कर सके
(जितेंद्र अरोरा ) 
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