गिरफ्तारी के वारण्ट के सम्बन्ध मे यह प्राविधान  है कि वारण्ट लिखित रूप मे न्यायालय द्वारा जारी किया जाए जिसमे कि मजिस्ट्रेट / पीठासीन अधिकारी के हस्ताक्षर हो और न्यायालय की मोहर भी हो । गिरफ्तारी का वांरट तब तक प्रभावी रहता है तब कि उसका निष्पादन न हो जाये अथवा न्यायालय द्वारा उसको निरस्त न कर दिया जाये । गिरफ्तारी के वारण्ट मे मुख्यतः 3 बातो पर ध्यान देना जरूरी है : _
(1)_वारण्ट लिखित हो ।
(2)_न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित हो ।
(3)_न्यायालय मोहर अंकित हो ।
        जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा रहा है उसका नाम तथा पता और उस अपराध का भी विवरण होना चाहिए जिसमे वह आरोपित है ।
गिरफ्तारी वारण्ट दो प्रकार के होते है :_
(क) जमानतीय वारण्ट
(ख) बिना जमानतीय वारण्ट
       जमानतीय वारण्ट से तात्पर्य ऐसे बारंट से है जिसमें न्यायालय द्वारा यह निर्देश होता है कि यदि वह व्यक्ति गिरफ्तार होता है और न्यायालय के समझ उपिस्थत होने के लिए समुचित बघनामा प्रस्तुत करता है तो उससे निर्धारित धनराशि का जमानतनामा लेकर हिरासत से मुक्त किया जाये ।
  बिना जमानतीय वारण्ट से तात्पर्य ऐसे वारण्ट से है लिसमे गिरफ्तार किये जाने पर पुलिस अधिकारी को ऐसे गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को बिना किसी विलम्ब के न्यायालय के समक्ष पेश करना अनिवार्य होता है ।


सौजन्य -
संजय रूहेला (अधिवक्ता) L L. M 
(काशीपुर बार एसोसिएशन) -संपर्क - 9927136750

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