22 वर्षों की जीतोड़ मेहनत और लगन के साथ अकेले ही पहाड़ को चकनाचूर कर पहाड़
का सीना चीर लोगों के लिए रास्ता बनाने वाले ...ना कोई बड़ी मशीन और ना ही
किसी का साथ बजाय सिर्फ एक छेनी और हथोड़े के। पहाड़ को अकेले तोड़ने की बात
ही आम इंसान की सोच के परे है लेकिन जिसने पहाड़ को भी घुटनो बल गेर दिया हो
मेरे दोस्त उसे माउंटेन मेन दशरथ मांझी कहते हैं। दशरथ मांझी भारत रत्न अवार्ड के पुरे हक़दार हैं।
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सरस्वती शिशु मंदिर के बच्चों ने द्रोणा सागर में श्रम दान किया |
काशीपुर में द्रोणासागर की सफाई हो या गिरीताल की सफाई - एक पहाड़ के आगे कोई बड़ी बात नहीं है , सिर्फ हौसले बुलंद होने चाहिए ,
काशीपुर के सभी जनता, नेताओं, सामाजिक संघटनो, स्कुल, कोलेजों से अपील है की थोडा बहुत सहयोग जरुर करे और अपने शहर की ऐतिहासिक धरोहरों को एक पर्यटन के रूप में पहचान दिलवाएं
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