5 जून विश्व पर्यवरण दिवस मनाया जाता है और बड़े बड़े कार्यक्रमों का आयोजन कर पौधा रोपण किया जाता है। पर्यावरण को बचाने की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं। लेकिन साल के 364 दिनों में एक दिन भी पर्यावरण को बचाने का ख्याल नहीं आता। ज़रा कितने दिन हम पानी को बचाने की कोशिश करते हैं। कितने पेड़ो को लगाकर उनकी सुरक्षा का दायित्व उठाते हैं, कितने दिन हम अपनी कार या मोटर साइकिल से ना जाकर वायु प्रदुषण का ख्याल करते हैं। हम इतने स्वार्थी हो गए की हमारी जिंदगी को चलाने वाले पर्यवरण के लिए हमारे पास समय नहीं है और ना ही हमें विश्व पर्यावरण का दिन याद है।
दिनों दिन होते जलवायु परिवर्तन से भी हमें कोई सीख नहीं मिल रही है। कहीं सुखा पड़ा है तो कही बाड़ ने लाखों जिंदगियों को प्रभावित किया है। बेमोसम बरसात से कृषि पर गहरा संकट खड़ा हो गया है। दालों के दाम आस्मां छू रहे हैं। लेकिन हम सरकारों और नेताओं को दोष देकर अपना पल्ला झाड लेंगे। लेकिन पर्यावरण के लिए खुद कुछ नहीं करेंगे। अगर हम अभी नहीं जागे तो वो दिन दूर नहीं जब धरती पर प्राणी का नमो निशाँ मिट जायगा। और हम देखते रह जायंगे।
दिनों दिन होते जलवायु परिवर्तन से भी हमें कोई सीख नहीं मिल रही है। कहीं सुखा पड़ा है तो कही बाड़ ने लाखों जिंदगियों को प्रभावित किया है। बेमोसम बरसात से कृषि पर गहरा संकट खड़ा हो गया है। दालों के दाम आस्मां छू रहे हैं। लेकिन हम सरकारों और नेताओं को दोष देकर अपना पल्ला झाड लेंगे। लेकिन पर्यावरण के लिए खुद कुछ नहीं करेंगे। अगर हम अभी नहीं जागे तो वो दिन दूर नहीं जब धरती पर प्राणी का नमो निशाँ मिट जायगा। और हम देखते रह जायंगे।
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