स्वास्थ्य व शिक्षा।
पेशा ही बन गया धन्धा
(गिरीश चन्दोला,हल्द्वानी)

कल तक जिन चीजो की गिनती पेशे में होती थी आज के दोर में वही पेशे व्यवसाय का रूप लेते देखे जा सकते है।स्वास्थ्य व शिक्षा के व्यवसायिकरण पर रोक लगना अनिवार्य है। जिस तरह से स्वास्थ्य व शिक्षा आज के दोर में महज एक धन्धा बनकर रह गयी है कुछ हद तक अपने मूल स्वरूप को खो चुकी है।एक समय था जब शिक्षा ओर स्वास्थ्य जनसेवा के अभिन्न अग हुआ करते थे। आज के बदलते राजनैतिक ओर अपने फायदे के सोदो ने दोनो को ही व्यवसाय बना दिया है जिसका नतीजा यह है कि आज कोई भी डाक्टर या अध्यापक दूरदराज के क्षेत्रों में अपनी सेवाए देने में भी असहजता महसूस करते देखे जा सकते है जिसके चलते अधिकांश डाक्टरो ने तो डाक्टरी को पेशा छोड़ व्यवसाय बना दिया है। महज नोट कमाने के चक्कर में स्वास्थ्य व शिक्षा का पूरा स्वरूप बदल चुका है। अगर स्वास्थ्य व शिक्षा पर सरकार सही तरह से कार्य करती तो सायद सरकारी आय में तो वृद्धि होती ही साथ ही साथ लोगो को सही शिक्षा ओर स्वास्थ्य सेवाए भी मुहैया हो पाती। लेकिन अब भी देर नही हुई समय रहते अगर स्वास्थ्य व शिक्षा पर लगाम नही लगाई गयी तो फिर वो समय दूर नही जब महज स्वास्थ्य व शिक्षा एक व्यवसाय बनकर रह जाएंगे।  हर स्वास्थ्य सेवाओ के बाहर अक्सर यही लिखा मिलता है कि हम 24/7 घटे अपनी सेवाए प्रदान करते है लेकिन यह बात तब खुलकर सामने आती है जब देर रात भी यह संस्थाए अपनी सेवाए लोगो को प्रदान नही कर पाते जिसके चलते कभी कभी तो मरीज को अपनी जान भी गवानी पड़ जाती है। लेकिन अगर इसी तरह से शिक्षा ओर स्वास्थ्य का व्यवसायिकरण होता रहा तो गरीब व्यक्ति सही ईलाज के लिए तरसता देखा जा सकता है। आज किसी भी निजी हास्पिटल की बात करे तो वो महज पैसा कमाने तक ही अपनी सेवाए प्रदान करते देखे जा सकते है। जिसका जीता जागता उदाहरण प्राइवेट क्लीनिको का रातो रात बड़े हास्पिटलो मे तब्दील होना ही नही अपितु शिक्षा के मन्दिरो का भी यही हाल है। हालिया नजारा यह है कि इन प्राइवेट संस्थानो में काम करने वाले कर्मचारियो का वेतन भी ना के बराबर ही होता है। यह अपने आप में जांच का विषय है लेकिन इस ओर भी अब तक किसी भी अधिकारी वर्ग ने जांच करने की जहमत नही ऊठाई है।