पड़ोसी देश नेपाल में आये जलजले से यह तो साफ हो ही गया है कि हम तबाही से निपटने के लिये हर समय कितने तैयार है। बाबजूद इसके कि नेपाल मे भूकंप से हुये जानमाल के नुकसान का आंकलन तो नहीं किया जा सकता लेकिन इतना जरुर है कि विपदा की इस घड़ी में नेपाल के के साथ कधें से कधां मिलाकर जरुर चला जा सकता है।

कहते है कि एक बार को इंसान की मार झेली जा सकती है। परंतु कुदरत की मार शयद ही कोई झेल सके, इसका ताजा उदाहरण पड़ोसी देश नेपाल है। जिसने 7.9 तीव्रता वाले शक्तिशाली भूकंप की मार चंद दिन पहले ही झेली है , हंसते-खिलखिलाते नेपाल को चंद सेकेंड में ही सुनसान कर दिया इस भूकंप ने। सदी के इस सबसे बड़े भूकंप ने नेपाल की जमीन को ऐसा हिलाया की चार दिन में 33 बार नेपालियों के साथ-साथ भारत जैसे शक्तिशाली देश के लोग भी भय के खौफ से महरुम न रह सके, भूकंप आने का कारण इंडियन और यूरेशियन प्लेटों के उपर बढ़ रहे दबाब और इनके करीब आने को बताया जा रहा है, भू- वैज्ञानिक ऐसा मान रहे है कि इन प्लेटों के पास आने के कारण पहाड़ तेजी से उपर उठ रहे है। जिससे कुछ देशों पर लगातार भूकंप का खतरा मंडरा रहा है। और इन ही प्लेटों के कारण नेपाल की जमीन में हलचल हुई, साथ ही भारत के कुछ राज्यों और शहरों  पर भी बड़े भूकंप का खतरा मंडरा रहा है, हंालाकि भारत में बिहार, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड,  आदि राज्य भी भूकंप से प्रभावित रहे और यहां भी सैकड़ो जिदंगीयां  पर भी भूकंप की मार पड़ी। वहीं नेपाल की ताजा तबाही में अबतक करीब 7,000 हजारों लोग काल के गाल में समा गये नेपाल की इस ताजा तबाही ने दुनिया को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर क्या वाकई दुनिया का अंत नजदीक है। नेपाल ही नहीं इससे पहले भूकंप की अगर बड़ी घटनाओं पर प्रकाश डाला जाये तो सन 2001 में भारत के गुजरात राज्य ने इसी तरह की तबाही झेली जिसमें हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी गुजरात के इस भूकंप से करीब 2.3 लाख इमारतें नष्ट हुई थी और करोड़ो के जान-माल की क्षति, वहीं 2005 में जम्मू-कश्मीर में आये भूकंप से करीब 4ण्5 लाख इमारते नष्ट हुई एवं हजारो लोग इसके शिकार हुये। हालाकिं नेपाल के भूकंप क्षेत्र में आबादी की बसावट बहुत सघंन नहीं थी लेकिन फिर भी हजारों लोग मारे गये बीते 2014 में जापान में 6ण्6 तीव्रता वाले भूकंप से करीब 1000 से भी ज्यादा लोग मारे गये, इस शक्तिशाली भूकंप से जापान जैसे विकसित देश को भी भारी क्षति का सामना करना पड़ा है जिसमें टोक्यो शहर का पूर्वी ताइवान सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। 2011 में ही ईस्ट जापान के हिरोशिमा, नागासाकी भी भूकंप से अछूते नहीं रहे फिलहाल जापान में भूकंप आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि जापान पृथ्वी की चार टैक्निक प्लेटों के प्रभाव क्षेत्र में पड़ता है और हर साल पृथ्वी पर आने वाले सर्वाधिक शक्तिशाली भूकंपो में 20 प्रतिशत से ज्यादा भूकंप सिर्फ जापान ही झेलता आया है नेपाल का भूकंप वाकई कुछ कहता है। अगर भविष्य में भूकंप आने की यही धारणा है तो यह नेपाल के साथ-साथ दूसरे देशों के लिये भी भविष्य में बड़े खतरे की और इशारा करता है। भूकंप के दौरान अधिकांश नुकसान जमीन मंे कंपन के कारण होता है जमीन में कपंन एक प्राकृतिक घटना है ऐसे में इमारतों की इजीनियरिंग ऐसी हो की वे भूकंप आने के तत्पश्चात उस झटके को सह सके, हालाकिं एक आकड़े के मुताबिक भारत में अब भी 60 से 80 फिसदी इमारतों, बिल्डिगों का निर्माण, विकास नियत्रंण नियमन का उल्लंघन है भूकंप आने के बाद इस तरह की आशंका वाले शहरों में नई इमारतों के निर्माण को सुरक्षित बनाने के लिये प्रभावी बनाया गया था लेकिन इस नियम का क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से न होने के कारण हमारी बिल्डिगों का बड़ा हिस्सा भूकंप जैसी आपदा की दृष्टि से असुरक्षित है ऐसा नहींे है कि भारत भूकंप की धार पर नहीं है भारत के कुछ बड़े शहर सहित देश की राजधानी दिल्ली भी भूकंप के साये में है जैसा कि मैंने पीछे जिक्र किया। कल्पना किजिये कि अगर दिल्ली, मंुबई में इतनी ही तीव्रता वाला भूकंप आ जाये तो हालात कैसे हो सकते है। लेकिन प्राकृतिक आपदा को मनुष्य तो रोक नहीं सकता पर समुचित प्रयासो के जरिये बड़े पैमाने पर होने वाले जान-माल के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है पर इसके प्रति आपदा का मुकाबला करने के लिये उचित प्रयास करने बेहद जरुरी है नेपाल में तबाही की मार झेल चुके लोगों को राहत व बचाव के जरिये जिस प्रकार सेना निकालने का काम कर रही है वे किसी करिश्मंे से कम नहीं है पर इसके लिये जज्बा और मानवीय सोच होना बहुत जरुरी है जैसा कि भारत के साथ-साथ कई बड़े देश मिलकर नेपाल में अपनी सेनाओं व सुरक्षाबलों को भेजकर वहां पर भूकंप पीडि़तों को सुरक्षित निकालने के लिये पूरी कोशिश में लगे है इस समय नेपाल को सिर्फ पड़ोसी देशांे से ही उम्मीद है और वो उम्मीद लगभग खरी उतरती दिखाई दे रही है संकट की इस घड़ी में नेपाल को फिर से उसके पैरो पर खड़ा करना इस समय सबसे बड़ा आॅपरेशन मैत्री ही है प्राकृतिक आपदायें हर साल दुनिया में तबाही मचाती है धरती के अस्तित्व के साथ आपदायें आने का क्रम भी लगातार जारी है अब प्राकृतिक आपदायें न केवल काफी संख्या में आ रही है बल्कि उनकी तीव्रता भी भयावह हुई है
प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रुप से इनके आने के जिम्मेदार सिर्फ हम ही है लिहाजा इनसे बचने और बचाने की चिंता हमें ही करनी होगी इसलिये जरुरी है कि सदी की सबसे बड़ी तबाही के दर्द को दूर करने के लिये हमसब नेपाल के इस दुख में उसके साक्षी बने तभी भूकंप जैसी आपदा की मार को कम किया जा सकता है फिलहाल भविष्य में किसी और देश के साथ ऐसी घटना न घटे जिसे नेपाल जैसा देश झेल चुका है।
(मोह्म्मद इकराम - पाठक- इनसाइड कवरेज न्यूज़ )

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