मध्यस्थता एक संवैधानिक प्रकिया है, जिसमे एक निष्पक्ष व
तटस्थ मध्यस्थ विवादित पक्ष को समझौते तक पहुंचाने मे सुसाध्य बनाता है ।
मध्यस्थ समाधान हेतू वाध्य नही करता, बल्कि एक सहायक वातावरण का निर्माण
करता है, जिसमें पक्षकार अपने समस्त विवादो की समस्या का समाधान कर सकते है
।
मध्यस्थता विवाद समाधान हेतू एक प्रयास तथा परीक्षित
वैकिल्पक पद्धति है ।दिल्ली, बैंगलौर, चेन्नईं तथा इलाहावाद मे इसकी महान
सफलता प्रमाणित हो चुकी है । मध्यस्थता प्रकिया मे भागीदारी करने बाले
वादीगण सिर्फ एक अर्थ मे इसका समर्थन करते है ।
मध्यस्था है:-
* एक संरचात्मक प्रक्रिया, जिसमे एक मध्यस्थ विशेष संचरण तथा वार्ता तकनीकी का प्रयोग करता है ।
* सुसाध्य पक्ष के विवाद मे समाधान की एक प्रक्रिया ।
* एक सुसाध्य प्रक्रिया जिसमे पक्षकार एक आपसी स्वीकार्य अनुबन्ध तक पहुचते है ।
* सुसाध्य पक्ष के विवाद मे समाधान की एक प्रक्रिया ।
* एक सुसाध्य प्रक्रिया जिसमे पक्षकार एक आपसी स्वीकार्य अनुबन्ध तक पहुचते है ।
मध्यस्थता बनाम विरोधी मुकद्दमेबाजी
* मध्यस्थता मे समय की हानी नही
* मध्यस्थता मे वित्तीय निवेश की आवश्यकता नही
* मध्यस्थता निरंतर कामकाज व वैयक्तिक रिश्तो को संरक्षित करता है ।
* मध्यस्थता विवादित पक्षो को लचीलापन, संयम और सहभागिता की अनुमति देता है
* निर्णित मध्यस्थता के खिलाफ अपील व रिवीजन मान्य नही है ।
* मध्यस्थता मे वित्तीय निवेश की आवश्यकता नही
* मध्यस्थता निरंतर कामकाज व वैयक्तिक रिश्तो को संरक्षित करता है ।
* मध्यस्थता विवादित पक्षो को लचीलापन, संयम और सहभागिता की अनुमति देता है
* निर्णित मध्यस्थता के खिलाफ अपील व रिवीजन मान्य नही है ।
मध्यस्थता कौन कर सकता है ?
कोई भी व्यक्ति जोकि सर्वोच्च न्यायालय की मिडिएशन एवम्
कन्सीलिएशन प्रोजेक्ट कमेटी द्वारा निर्धारित 40 घण्टे का अपेक्षित
प्रशिक्षण रखता हो, मध्यस्थ हो सकता है
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